बुझते हुए अरमानों का इतना ही फ़साना हैबुझते हुए अरमानों का इतना ही फ़साना हैइश्क़ में तेरे हर पल हम को रहना हैचाहे सितमगर कितने भी ज़ख़्म दे हमेंइश्क़ में हर ज़ख्म हमें हँसते हुए सहना है
फुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने कीफुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने कीनिगाहें बदल जाती हैं अपने बेगानों कीतुम भी छोड़कर चले गए हमेंअब तम्मना न रही किसी से दिल लगाने की
तुम ने जो दिल के अँधेरे में जलाया था कभीतुम ने जो दिल के अँधेरे में जलाया था कभीवो दिया आज भी सीने में जला रखा हैदेख आ कर दहकते हुए ज़ख्मों की बहारमैंने अब तक तेरे गुलशन को सजा रखा है।
फुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने कीफुर्सत किसे है ज़ख्मों को सरहाने कीनिगाहें बदल जाती हैं अपने बेगानों कीतुम भी छोड़कर चले गए हमेंअब तम्मना न रही किसी से दिल लगाने की