बड़ी उम्मीद थी उनको अपना बनाने कीबड़ी उम्मीद थी उनको अपना बनाने कीतमन्ना थी उनके हो जाने कीक्या पता था जिनके हम होना चाहते हैंउनको आदत ही नहीं थी किसी को अपना बनाने की
सजा लबों से अपने सुनाई तो होतीसजा लबों से अपने सुनाई तो होतीरूठ जाने की वजह बताई तो होतीबेच देता मैं खुद को तुम्हारे लिएकभी खरीदने की चाहत जताई तो होती
याद आती है तुम्हारी तो सिहर जाता हूँ मैंयाद आती है तुम्हारी तो सिहर जाता हूँ मैं;देख कर साया तुम्हारा अब तो डर जाता हूँ मैं;अब न पाने की तमन्ना है न है खोने का डर;जाने क्यूँ अपनी ही चाहत से मुकर जाता हूँ मैं
बहुत जी चाहता है कैद-ए-जाँ से हम निकल जायेंबहुत जी चाहता है कैद-ए-जाँ से हम निकल जायें;तुम्हारी याद भी लेकिन इसी मलबे में रहती है
दिल की धड़कन और मेरी सदा है वोदिल की धड़कन और मेरी सदा है वोमेरी पहली और आखिरी वफ़ा है वोचाहा है उसे चाहत से बड़ करमेरी चाहत और चाहत की इंतिहा है वो