वफ़ाएँ कर केवफ़ाएँ कर के..वफ़ाएँ कर के जफ़ाओं का ग़म उठाए जाइसी तरह से ज़माने को आज़माए जाकिसी में अपनी सिफ़त के सिवा कमाल नहींजिधर इशारा-ए-फ़ितरत हो सिर झुकाए जावो लौ रबाब से निकली धुआँ उठा दिल सेवफ़ा का राग इसी धुन में गुनगुनाए जानज़र के साथ मोहब्बत बदल नहीं सकतीनज़र बदल के मोहब्बत को आज़माए जाख़ुदी-ए-इश्क़ ने जिस दिन से खोल दीं आँखेंहै आँसुओं का तक़ाज़ा कि मुस्कुराए जाथी इब्तिदा में ये तादीब-ए-मुफ़लिसी मुझ कोग़ुलाम रह के गुलामी पे मुस्कुराए जा