वक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गयावक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गयाक्यों न मुझ को भी तेरे दर से उठा कर ले गयारात अपने चाहने वालों पे था वो मेहर-बाँमैं न जाता था मगर वो मुझ को आ कर ले गयाएक सैल-ए-बे-अमाँ जो आसियों को था सज़ानेक लोगों के घरों को भी बहा कर ले गयामैं ने दरवाज़ा न रक्खा था के डरता था मगरघर का सरमाया वो दीवारें गिरा कर ले गयावो अयादत को तो आया था मगर जाते हुएअपनी तस्वीरें भी कमरे से उठा कर ले गयामेहर-बाँ कैसे कहूँ मैं 'अर्श' उस बे-दर्द कोनूर आँखों का जो इक जलवा दिखा कर ले गया
अजब यक़ीन उस शख़्स के गुमान में थाअजब यक़ीन उस शख़्स के गुमान में थावो बात करते हुए भी नई उड़ान में थाहवा भरी हुई फिरती थी अब के साहिल परकुछ ऐसा हौसला कश्ती के बादबाँ में थाहमारे भीगे हुए पर नहीं खुले वर्नाहमें बुलाता सितारा तो आसमान में थाउतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का,अजीब शहद सा कल रात उस ज़बान में था;खुली तो आँख तो 'ताबिश' कमाल ये देखावो मेरी रूह में था और मैं मकान में था
ज़िंदगी की हर एक उड़ान बाकी हैज़िंदगी की हर एक उड़ान बाकी हैहर मोड़ पर एक इम्तिहान बाकी हैअभी तो सिर्फ़ आप ही परेशान है मुझसेअभी तो पूरा हिन्दुस्तान बाकी है