Shayari Shayari

हल चलाता खेतों में हर भूखे पेट का अरमान हूँ

हल चलाता खेतों में हर भूखे पेट का अरमान हू
कभी तो अपना समझो यारों इसी देश का किसान हू
बदल्ती हैं जब सरकारें तब बनजाता हूँ मतदात
आता हूँ नज़र चुनावों में ,कहलाता हूँ अन्नदात
खिलौना समझ न खेलो मुझसे में भी तो इंसान हू
कभी तो अपना समझो यारों इसी देश का किसान हू
आए होली जाए दिवाली, में खुद भूखा सोजाता हू
रोदेता हूँ जब अपनों को पेड़ों पे लटका पाता हू
सिखादो लड़ना हालातों से दुनिया से अनजान हू
कभी तो अपना समझो यारों इसी देश का किसान हू
नहीं हे कपडा बदन पे मेरे छत भी आंसू बहाती ह
सुनी पड़ी हे रससोई मेरी,बस मटकी पानी पिलाती ह
क्या होगा कल बच्चों का यही सोच के में परेशान हू
कभी तो अपना समझो यारों इसी देश का किसान हू
हल चलाता खेतों में हर भूखे पेट का अरमान हू
कभी तो अपना समझो यारों इसी देश का किसान हू

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