मयख़ाने से बढ़कर कोई ज़मीन नहींमयख़ाने से बढ़कर कोई ज़मीन नहींजहाँ सिर्फ़ क़दम लड़खड़ाते हैं ज़मीर नहीं
मयख़ाने से बढ़कर कोई ज़मीन नहींमयख़ाने से बढ़कर कोई ज़मीन नहींजहाँ सिर्फ़ क़दम लड़खड़ाते हैं, ज़मीर नहीं
होते ही शाम मैं किधर जाता हूँहोते ही शाम मैं किधर जाता हूँजुदा ख्यालों से मैं बिखर जाता हूँखौफ इस कदर होता है यादों काजाम की महफिल में नजर आता हूँ
अलग बैठे थे फिर भी आँख साकी की पड़ी मुझ परअलग बैठे थे फिर भी आँख साकी की पड़ी मुझ परअगर है तिश्नगी कामिल तो पैमाने भी आयेंगे।अर्थतिश्नगी - प्यास, पिपासा, तृष्णा, लालसा, अभिलाषा, इश्तियाककामिल - पूरा, सम्पूर्ण, मुकम्मलपैमाने - शराब का गिलास, पानपात्