आज कल सुबह नहीं होती बल्कि सीधे दोपहर हो जाती है। सुबह का भूला शाम को घर आये तो उसे भूला हुआ नहीं... . . . . . . . . बल्कि भुना हुआ कहते हैं।
पता नहीं कौन सा मौसम चल रहा है। रात को कम्बल लेकर पंखा चलाकर सोता हूँ और सुबह गर्म पानी से नहाना पड़ता है। कौनो फिरकी ले रहा है भाई।
गर्मी आ रही है। लड़कियाँ जहाँ खुश हैं कि अब बिना स्वेटर के अपने फैशन वाले कपडे पहन कर घूम सकती हैं। वहीं लड़के दुखी हैं कि बिना जैकेट के ठेके से बोतल कैसे लाएंगे।
गर्मियों में ठंडी हवा के लिये माँगी हुई दुआ अब सर्दियों में कबूल होते हुए देखकर यकीन हो गया है कि... . . . . . . . . . ऊपर वाले के घर देर है अंधेर नही।
Winter season special: ये "नहाना" समझ से परे है। जिस शब्द में आगे "न" है और पीछे "ना" है तो बीच में ये दुनिया "हाँ" कराने पर क्यों तुली है।