कल मैं मैराथन देखने गया, वहाँ पड़ोस की भाभी टाइट टी-शर्ट पहन के खड़ी थी। उसने पूछा, "मेराथन देख रहे हो?" अब मैं इस कश्मकश में हूँ कि उसने मेरा मन भाँप लिया था, या उसके उच्चारण में ही गड़बड़ थी?
एक कड़वा सच: मुसीबत में ये मत सोचो कि अब कौन काम आएगा, बल्कि ये सोचो कि अब कौन भोसड़ी का अपनी गांड मरवाएगा?
कुछ बीवियाँ अपने पति के खाने में तेल ज्यादा डालती हैं। इससे उनको शायद यह लगता है कि रात को उनके पति "माइलेज" ज्यादा देंगे।
लडकी कितनी भी गोरी क्यो न हो उसकी एक चीज हमेशा काली रहती है... . . . . . . . . परछाई भोंसड़ी वालों, परछाई!
कोई और गुनाह करवा दे मुझ से मेरे खुदा, मोहब्बत करना अब मेरे बस की बात नहीं। . . . . . . . . . . भावार्थ:- प्रस्तुत पद में कवि सिर्फ पेलना चाहते हैं।
सारी शिकायत एक पल में दूर हो जाती है, जब वो कहती है... मुझको आदत है नखरे दिखाने की, आप तो बस चढ़ जाया करो।
आज का कुविचार: ज़िंदगी में कुछ पकड़ना है तो बुलंदियों को पकड़ो; बात-बात पर लंड पकड़ने से कुछ नहीं मिलेगा।
लोग कहते हैं किआजकल के गाने वलगर हैं। पहले के क्या थे... लागा चुनरी में दाग़ छुपाऊँ कैसे? अब कोई पूछे चुनरी नीचे बिछा के ज़रूर मरवानी थी।
एक मोहतरमा बोल रही थी कि मैने अच्छे अच्छों को सीधा कर दिया है . . . . . . . . . मैने पूछ लिया जिनका लिंग मुट्ठ मार के टेढ़ा हो चुका है वो किस समय मिले।
जैसे सुहागन महिला बिना सिंदूर के अधूरी रहती है... . . . . . . ठीक वैसे ही ट्रेनें बिना गुप्त रोग और वशीकरण के विज्ञापन के बगेर अधूरी हैं!