रात के टुकड़ों पे

SHARE

रात के टुकड़ों पे..
रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ दे
शमा से कहना कि जलना छोड़ दे
मुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैं
कैसे कोई राह चलना छोड़ दे
तुझसे उम्मीदे - वफ़ा बेकार है
कैसे इक मौसम बदलना छोड़ दे
मैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहीं
तू ही मेरे साथ चलना छोड़ दे
कुछ तो कर आदाबे - महफ़िल का लिहाज़
यार ये पहलू बदलना छोड़ दे

This is a great मेरे खुदा शायरी. If you like हुस्न तारीफ शायरी then you will love this. Many people like it for बरसात का मौसम शायरी. Share it to spread the love.

SHARE