रात के टुकड़ों पेरात के टुकड़ों पे..रात के टुकड़ों पे पलना छोड़ देशमा से कहना कि जलना छोड़ देमुश्किलें तो हर सफ़र का हुस्न हैंकैसे कोई राह चलना छोड़ देतुझसे उम्मीदे - वफ़ा बेकार हैकैसे इक मौसम बदलना छोड़ देमैं तो ये हिम्मत दिखा पाया नहींतू ही मेरे साथ चलना छोड़ देकुछ तो कर आदाबे - महफ़िल का लिहाज़यार ये पहलू बदलना छोड़ दे
हुस्न पर जब भी मस्ती छाती हैहुस्न पर जब भी मस्ती छाती हैतब शायरी पर बहार आती हैपीके महबूब के बदन की शराबजिंदगी झूम-झूम जाती है
सिर्फ एक ही बात सीखी इन हुस्न वालों से हमनेसिर्फ एक ही बात सीखी इन हुस्न वालों से हमनेहसीन जिस कि जितनी अदा है वो उतना ही बेवफा है
चमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखेचमन में जा के हम ने ग़ौर से औराक़-ए-गुल देखेतुम्हारे हुस्न की शरहें लिखी हैं इन रिसालों में
तेरे हुस्न को परदे की ज़रूरत ही क्या है ज़ालिमतेरे हुस्न को परदे की ज़रूरत ही क्या है ज़ालिमकौन रहता है होश में तुझे देखने के बाद