ये आइने अब घर के सँवरते क्यूँ नहीं

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ये आइने अब घर के सँवरते क्यूँ नहीं
वो ज़ुल्फ़ के सायें बिखरते क्यूँ नहीं
लगता है ऐसे के बिछड़े हैं अभी-अभी
भूले से भी उन्हें हम भूलते क्यूँ नहीं

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