​क्यूँ तबीअत कहीं​

SHARE

​क्यूँ तबीअत कहीं​..

​​क्यूँ तबीअत कहीं ठहरती नहीं​;
​​दोस्ती तो उदास करती नहीं​;

​​हम हमेशा के सैर-चश्म सही​;
​​तुझ को देखें तो आँख भरती नहीं​;

​​शब-ए-हिज्राँ भी रोज़-ए-बद की तरह​;
​​कट तो जाती है पर गुज़रती नहीं​

​​ये मोहब्बत है, सुन, ज़माने, सुन​;

इतनी आसानियों से मरती नहीं​
.
​जिस तरह तुम गुजारते हो फ़राज़​
​जिंदगी उस तरह गुज़रती नहीं​

This is a great उदास चेहरा शायरी. If you like ज़माने पर शायरी then you will love this. Many people like it for इजहारे मोहब्बत शायरी.

SHARE