हँस कर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंनेहँस कर कबूल क्या कर ली सजाएँ मैंनेज़माने ने दस्तूर ही बना लिया हर इलज़ाम मुझ पर मढ़ने का
मैं इस काबिल तो नही कि कोई अपना समझेमैं इस काबिल तो नही कि कोई अपना समझेपर इतना यकीन है, कोई अफसोस जरूर करेगा मुझे खो देने के बाद
आज असमान के तारों ने मुझे पूछ लियाआज असमान के तारों ने मुझे पूछ लियाक्या तुम्हें अब भी इंतज़ार है उसके लौट आने कामैंने मुस्कुराकर कहातुम लौट आने की बात करते होमुझे तो अब भी यकीन नहीं उसके जाने का
वो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर थावो थे न मुझसे दूर न मैं उनसे दूर थाआता न था नज़र तो नज़र का कुसूर था।
तुम रख ना सकोगे मेरा तौफ़ा संभालकरतुम रख ना सकोगे मेरा तौफ़ा संभालकरवरना मैं अभी दे दूं जिस्म से रूह निकाल कर।
उससे कहो के मेरी सजा को कुछ कम कर देउससे कहो के मेरी सजा को कुछ कम कर देमैं आदि मुजरिम नहीं हूँ गलती से इश्क हुआ था