कोई समझाए ये क्या

SHARE

कोई समझाए ये क्या..
कोई समझाए ये क्या रंग है मैख़ाने का
आँख साकी की उठे नाम हो पैमाने का
गर्मी-ए-शमा का अफ़साना सुनाने वालों
रक्स देखा नहीं तुमने अभी परवाने का
चश्म-ए-साकी मुझे हर गाम पे याद आती है
रास्ता भूल न जाऊँ कहीं मैख़ाने का
अब तो हर शाम गुज़रती है उसी कूचे मे
ये नतीजा हुआ ना से तेरे समझाने का
मंज़िल-ए-ग़म से गुज़रना तो है आसाँ 'इक़बाल'
इश्क है नाम ख़ुद अपने से गुज़र जाने का

This is a great क्या कहु शायरी. If you like क्या खूब शायरी then you will love this. Many people like it for क्या बात है शायरी. Share it to spread the love.

SHARE