तेरे कमाल की हद

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तेरे कमाल की ह
तेरे कमाल की हद कब कोई बशर समझा
उसी क़दर उसे हैरत है, जिस क़दर समझा
कभी न बन्दे-क़बा खोल कर किया आराम
ग़रीबख़ाने को तुमने न अपना घर समझा
पयामे-वस्ल का मज़मूँ बहुत है पेचीदा
कई तरह इसी मतलब को नामाबर समझा
न खुल सका तेरी बातों का एक से मतलब
मगर समझने को अपनी-सी हर बशर समझा

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