​मैं उसके चेहरे को

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​मैं उसके चेहरे को..
मैं उसके चेहरे को दिल से उतार देती हूँ
मैं कभी कभी तो खुद को भी मार देती हूँ

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ये मेरा हक़ है कि मैं उसको थोडा दुःख भी दूं
मैं चाहत भी तो उसे बेशुमार देती हूँ

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खफा वो रह नहीं सकता लम्हा भर भी
​मैं बहुत पहले ही उसको पुकार लेती हूँ

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मुझे सिवा उसके कोई भी काम नहीं सूझता
वो जो भी करता है, मैं सब हिसाब लेती हूँ;​

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वो सभी नाज़ उठाता है मैं जो भी कहती हूँ
वो जो भी कहता है मैं चुपके से मान लेती हूँ

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