​​​हवा बन कर​​

SHARE

​​​हवा बन कर​​..
.

हवा बन कर बिखरने से​;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;​​
.
.
मेरे जीने या मरने से​;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;
.
.
उसे तो अपनी खुशियों से​;
ज़रा भी फुर्सत नहीं मिलती​;
.
.
मेरे ग़म के उभरने से​;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​;
.
.
उस शख्स की यादों में​;
मैं चाहे रोते रहूँ लेकिन​;
.
.
​मेरे ऐसा करने से​;
उसे क्या फ़र्क़ पड़ता है​।

This is a great अपनी पहचान शायरी. If you like क्या कहु शायरी then you will love this. Many people like it for खुशियों की शायरी.

SHARE