किस को क़ातिल मैं कहूँ

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किस को क़ातिल मैं कहूँ..
किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँ
सब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझू
वो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता था
अब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँ
दिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठे
ऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँ
ज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवी
लुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ

This is a great नज़र अंदाज़ शायरी. If you like अपना ख्याल रखना शायरी then you will love this. Many people like it for तेरी आँखे शायरी.

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