इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के

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इस तरफ से गुज़रे थे काफ़िले बहारों के
आज तक सुलगते हैं ज़ख्म रहगुज़ारों के
खल्वतों के शैदाई खल्वतों में खुलते हैं
हम से पूछ कर देखो राज़ पर्दादारों के
पहले हँस के मिलते हैं फिर नज़र चुराते हैं
आश्ना-सिफ़त हैं लोग अजनबी दियारों के
तुमने सिर्फ चाहा है हमने छू के देखे हैं
पैरहन घटाओं के, जिस्म बर्क-पारों के
शगले-मयपरस्ती गो जश्ने-नामुरादी है
यूँ भी कट गए कुछ दिन तेरे सोगवारों के

This is a great नज़र अंदाज़ शायरी. If you like अजनबी दोस्त शायरी then you will love this. Many people like it for तेरे आंसू शायरी.

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