क्या कहिये किस तरह से

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क्या कहिये किस तरह से..
क्या कहिये किस तरह से जवानी गुज़र गई
बदनाम करने आई थी बदनाम कर गई
क्या क्या रही सहर को शब-ए-वस्ल की तलाश
कहता रहा अभी तो यहीं थी किधर गई
रहती है कब बहार-ए-जवानी तमाम उम्र
मानिन्दे-बू-ए-गुल इधर आयी उधर गई
नैरंग-ए-रोज़गार से बदला न रंग-ए-इश्क़
अपनी हमेशा एक तरह पर गुज़र गई

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