फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था

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फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था..
फांसले ऐसे भी होंगे ये कभी सोचा न था
सामने बैठा था मेरे और वो मेरा न था
वो कि ख़ुशबू की तरह फैला था मेरे चार सू
मैं उसे महसूस कर सकता था छू सकता न था
रात भर पिछली ही आहट कान में आती रही
झाँक कर देखा गली में कोई भी आया न था
ख़ुद चढ़ा रखे थे तन पर अजनबीयत के गिलाफ़
वर्ना कब एक दूसरे को हमने पहचाना न था
याद कर के और भी तकलीफ़ होती थी 'अदीम'
भूल जाने के सिवा अब कोई भी चारा न था

This is a great मेरे खुदा शायरी. If you like मेरा बचपन शायरी then you will love this. Many people like it for मेरे दुश्मन शायरी. Share it to spread the love.

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