बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये

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बुझी नज़र तो करिश्मे भी रोज़ो शब के गये
कि अब तलक नही पलटे हैं लोग कब के गये
करेगा कौन तेरी बेवफ़ाइयों का गिला
यही है रस्मे ज़माना तो हम भी अब के गये
मगर किसी ने हमें हमसफ़र नही जाना
ये और बात कि हम साथ साथ सब के गये
अब आये हो तो यहाँ क्या है देखने के लिए
ये शहर कब से है वीरां वो लोग कब के गये
गिरफ़्ता दिल थे मगर हौसला नहीं हारा
गिरफ़्ता दिल है मगर हौंसले भी अब के गये
तुम अपनी शम्ऐ-तमन्ना को रो रहे हो 'फ़राज़'
इन आँधियों में तो प्यारे चिराग सब के गये

This is a great नज़र अंदाज़ शायरी. If you like तिरछी नज़र शायरी then you will love this. Many people like it for एक नज़र शायरी.

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