हुस्न की तारीफ़ शायरी

इस बार उन से मिल के जुदा हम जो हो गए

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ख़ून बर कर मुनासिब

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बंद आँखों से न हुस्न-ए-शब का अंदाज़ा लगा

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तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ

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देखना भी तो उन्हें दूर से देखा करना

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तुझे खोकर भी तुझे पाऊं जहाँ तक देखूँ

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