ज़बाँ सुख़न को सुख़न..ज़बाँ सुख़न को सुख़न बाँकपन को तरसेगासुख़नकदा मेरी तर्ज़-ए-सुख़न को तरसेगानये प्याले सही तेरे दौर में साक़ीये दौर मेरी शराब-ए-कोहन को तरसेगामुझे तो ख़ैर वतन छोड़ के अमन न मिलीवतन भी मुझ से ग़रीब-उल-वतन को तरसेगाउन्हीं के दम से फ़रोज़ाँ हैं मिल्लतों के चराग़ज़माना सोहबत-ए-अरबाब-ए-फ़न को तरसेगाबदल सको तो बदल दो ये बाग़बाँ वरनाये बाग़ साया-ए-सर्द-ओ-समाँ को तरसेगाहवा-ए-ज़ुल्म यही है तो देखना एक दिनज़मीं पानी को सूरज किरन को तरसेगा
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