वो जो वह एक अक्स है सहमा हुआ डरा हुआदेखा है उसने गौर से सूरज को डूबता हुआतकता हु कितनी देर से दरिया को मैं करीब सेरिश्ता हरेक ख़त्म क्या पानी से प्यास का हुआहोठो से आगे का सफर बेहतर है मुल्तवी करेवो भी है कुछ निढाल सा मैं भी हु कुछ थका हुआकल एक बरहना शाख से पागल हवा लिपट गयीदेखा था खुद ये सानिहा, लगता है जो सुना हुआपैरो के निचे से मेरे कब की जमीं निकल गयीजीना है और या नहीं अब तक न फैसला हुआ
This is a great अक्स पर शायरी.