लहू न हो तो क़लम..लहू न हो तो क़लम तरजुमाँ नहीं होताहमारे दौर में आँसू ज़ुबाँ नहीं होताजहाँ रहेगा वहीं रौशनी लुटायेगाकिसी चिराग का अपना मकाँ नहीं होताये किस मक़ाम पे लाई है मेरी तनहाईकि मुझ से आज कोई बदगुमाँ नहीं होतामैं उस को भूल गया हूँ ये कौन मानेगाकिसी चिराग के बस में धुआँ नहीं होता'वसीम' सदियों की आँखों से देखिये मुझ कोवो लफ़्ज़ हूँ जो कभी दास्ताँ नहीं होता
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