दिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा है SHARE FacebookTwitter दिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा हैभरी महफिल में सच बोलना अब जुर्म जैसा हैहर ज्यादती को सहन कर लो चुपचापशहर में इस तरह से चीखना जुर्म जैसा हैMoreThis is a great खिड़की पर शायरी. If you like जुर्म पर शायरी then you will love this. SHARE FacebookTwitter Tagsखिड़की पर शायरी, जुर्म पर शायरी