मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में

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मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने में
कि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने में
वो शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गयी जैसे
अजीब बात हुई है उसे भुलाने में
जो मुंतज़िर ना मिला वो तो हम हैं शर्मिंदा
कि हमने देर लगा दी पलट के आने में

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