इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थी SHARE FacebookTwitter इक टूटी-सी ज़िंदगी को समेटने की चाहत थीन खबर थी उन टुकड़ों को ही बिखेर बैठेंगे हम SHARE FacebookTwitter Tagsचाहत शेरो शायरी