संचित समस्त ज्ञान की बजी लगाना आया हू | हे भारत के वीर मै तुझे जगाने

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संचित समस्त ज्ञान की बजी लगाना आया हू | हे भारत के वीर मै तुझे जगाने आया हू ………… दुसमन खड़ा है हर द्वार , रोक के प्रगति की रफ़्तार कर रहा मानवता का संहार , मिटा रहा तेरी धरती का आधार | दुसमन है कई जंग के मैदान में ,,,मै तुझे बुलाने आया हूँ……. हे भारत के वीर मै तुझे जगाने आया हूँ | कर तू प्रहार कर पापियों क संहार कर मिटा दे नाम गुनाह का वार कर तू वार कर उत्सुक हू स्वच्छ समाज का, उत्साह बदने आया हूँ ,,,,| हे भारत के वीर मै तुझे जगाने आया हूँ | काला धन बदल दिया है सबका मन घुस खोरी से दुषित हो चला है उपवन अंगडाई ले रही अत्याचार अब ……. रुक-सी गयी है प्रगति की धार अब … त्याग दे खुशिया अपनी धरती के लिए | त्याग अपना स्वार्थ भारत और भारतीय के लिए ……. महसूस कर गर्व कितना बड़ा हे देश प्रेम का…… सोच और सोचने पर मजबूर कर ,,,,फर्ज हे कर और जरुर कर बदलेगा समय बदलेगा देश विश्वाश दिलाने आया हूँ . हे भारत …………………………… एक विचार कर कर तू उसका संचार कर निति बना तू वार कर एक देश भक्त का अवतार कर …/////// जय हिन्द

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