वैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं ग़ालिबवैसे ही दिन वैसी ही रातें हैं ग़ालिब, वही रोज का फ़साना लगता हैअभी महीना भी नहीं गुजरा और यह साल अभी से पुराना लगता है