कैसे बयान करें आलम दिल की बेबसी काकैसे बयान करें आलम दिल की बेबसी कावो क्या समझे दर्द आंखों की इस नमी काउनके चाहने वाले इतने हो गए हैं अब किउन्हे अब एहसास ही नहीं हमारी कमी का
जब तक अपने दिल में उनका गम रहाजब तक अपने दिल में उनका गम रहाहसरतों का रात दिन मातम रहाहिज्र में दिल का ना था साथी कोईदर्द उठ-उठ कर शरीक-ए-गम रहा
कैसे बयान करे अब आलम दिल की बेबसी काकैसे बयान करे अब आलम दिल की बेबसी कावो क्या समझे दर्द इन आंखों की नमी काचाहने वाले उनके इतने हो गए हैं किअब एहसास ही नहीं उन्हें हमारी कमी का
वो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहींवो नाराज़ हैं हमसे कि हम कुछ लिखते नहींकहाँ से लायें लफ्ज़ जब हम को मिलते ही नहींदर्द की जुबान होती तो बता देते शायदवो ज़ख्म कैसे दिखायें जो दिखते ही नहीं