अजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी काअजब मुकाम पे ठहरा हुआ है काफिला जिंदगी कासकून ढूढनें चले थे, नींद ही गवा बैठे
राह में निकले थे ये सोचकरराह में निकले थे ये सोचकर, किसी को बना लेंगे अपनामगर इस ख्वाहिश ने, जिंदगी भर का मुसाफिर बना दिया
जिंदगी ने कुछ इस तरह का रूख लियाजिंदगी ने कुछ इस तरह का रूख लियाजिसने जिस तरफ चाहा मोड़ दियाजिसको जितनी थी जरुरत साथ चलाऔर फिर एक लम्हें में तन्हा छोड़ दिया
जीना चाहता हूँ मगर जिंदगी रास नहीं आतीजीना चाहता हूँ मगर जिंदगी रास नहीं आतीमरना चाहता हूँ मगर मौत पास नहीं आतीउदास हूँ इस जिंदगी से इसलिए क्योंकिउसकी यादें तडपाने से बाज नहीं आती
जियो जिंदगी जरुरत के मुताबिकजियो जिंदगी जरुरत के मुताबिक;ख्वाइशों के मुताबिक नहीं;जरुरत फ़क़ीर भी कर लेता हैं पूरी;ख्वाइश कभी बादशाह की भी पूरी नहीं हुई।
शायद यह वक़्त हम से कोई चाल चल गयाशायद यह वक़्त हम से कोई चाल चल गयारिश्ता वफ़ा का और ही रंगों में ढ़ल गयाअश्क़ों की चाँदनी से थी बेहतर वो धूप हीचलो उसी मोड़ से शुरू करें फिर से जिंदगी