ऐ काश कुदरत का कहीं ये नियम हुआ करेऐ काश कुदरत का कहीं ये नियम हुआ करेतुझे देखने के सिवा ना मुझे कोई काम हुआ करे
सो सुख पा कर भी सुखी न होसो सुख पा कर भी सुखी न होपर एक ग़म का दुःख मनाता हैतभी तो कैसी करामात है कुदरत कीलाश तो तैर जाती है पानी मेंपर ज़िंदा आदमी डूब जाता है