आयें हैं उसी मोड पे लेकिन अपना नही यहाँ अब कोईआयें हैं उसी मोड पे लेकिन अपना नही यहाँ अब कोईइस शहर ने इस दीवाने को ठुकराया है बार-बारमाना कि तेरे हुस्न के काबिल नही हूँ मैंपर यह कमबख्त इश्क तेरे दर पे हमें लाया है बार-बार
नक़ाब क्या छुपाएगा शबाब-ए-हुस्न कोनक़ाब क्या छुपाएगा शबाब-ए-हुस्न कोनिगाह-ए-इश्क तो पत्थर भी चीर देती है