या मुझे अफ़्सर-ए-शाहाया मुझे अफ़्सर-ए-शाहा..या मुझे अफ़्सर-ए-शाहा न बनाया होताया मेरा ताज गदाया न बनाया होताख़ाकसारी के लिये गरचे बनाया था मुझेकाश ख़ाक-ए-दर-ए-जानाँ न बनाया होतानशा-ए-इश्क़ का गर ज़र्फ़ दिया था मुझकोउम्र का तंग न पैमाना बनाया होताअपना दीवाना बनाया मुझे होता तूनेक्यों ख़िरदमन्द बनाया न बनाया होताशोला-ए-हुस्न चमन में न दिखाया उसनेवरना बुलबुल को भी परवाना बनाया होता
अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ ..... अर्ज़-ए-नियाज़-ए-इश्क़ के क़ाबिल नहीं रहा;जिस दिल पे नाज़ था मुझे वो दिल नहीं रहा; ..मरने की, अय दिल, और ही तदबीर कर, कि मैं;शायान-ए-दस्त-ओ-बाज़ु-ए-का़तिल नहीं रहा;. वा कर दिए हैं शौक़ ने, बन्द-ए-नकाब-ए-हुस्न;ग़ैर अज़ निगाह, अब कोई हाइल नहीं रहा;..बेदाद-ए-इश्क़ से नहीं डरता मगर असद ;.जिस दिल पे नाज़ था मुझे, वो दिल नहीं रहा।