वफ़ा के भेस मेंवफ़ा के भेस में..वफ़ा के भेस में कोई रक़ीब-ए-शहर भी हैहज़र! के शहर के क़ातिल तबीब-ए-शहर भी हैवही सिपाह-ए-सितम ख़ेमाज़न है चारों तरफ़जो मेरे बख़्त में था अब नसीब-ए-शहर भी हैउधर की आग इधर भी पहुँच न जाये कहींहवा भी तेज़ है जंगल क़रीब-ए-शहर भी हैअब उसके हिज्र में रोते हैं उस के घायल भीख़बर न थी के वो ज़ालिम हबीब-ए-शहर भी हैये राज़ नारा-ए-मन्सूर ही से हम पे ख़ुलाके चूब-ए-मिम्बर-ए-मस्जिद सलीब-ए-शहर भी हैकड़ी है जंग के अब के मुक़ाबिले पे 'फ़राज़'अमीर-ए-शहर भी है और खतीब-ए-शहर भी है
बहुत दूर है मेरे शहर से तेरे शहर का किनाराबहुत दूर है मेरे शहर से तेरे शहर का किनाराफिर भी हम हवा के हर झोंके से तेरा हाल पूछते है