हर तरफ हर जगहहर तरफ हर जगह..हर तरफ हर जगह बेशुमार आदमीफिर भी तन्हाईयों का शिकार आदमीसुबह से शाम तक बोझ ढोता हुआअपनी ही लाश का खुद मज़ार आदमीरोज़ जीता हुआ रोज़ मरता हुआहर नए दिन नया इतज़ार आदमीहर तरफ भागते दौड़ते का शिकार आदमीहर तरफ आदमी का शिकार आदमीज़िंदगी का मुक़द्दर सफ़र दर सफ़रआखिरी सांस तक बेक़रार आदमी
सांस थम जाती हैंसांस थम जाती हैं, पर जान नहीं जातीदर्द होता है, पर आवाज नहीं आतीअजीब लोग हैं इस जमाने मेंकोई भूल नहीं पाता और किसी को याद नहीं आती