कौन कहता है किकौन कहता है कि..कौन कहता है कि मौत आयी तो मर जाऊँगामैं तो दरिया हूं, समंदर में उतर जाऊँगातेरा दर छोड़ के मैं और किधर जाऊँगाघर में घिर जाऊँगा, सहरा में बिखर जाऊँगातेरे पहलू से जो उठूँगा तो मुश्किल ये हैसिर्फ़ इक शख्स को पाऊंगा, जिधर जाऊँगाअब तेरे शहर में आऊँगा मुसाफ़िर की तरहसाया-ए-अब्र की मानिंद गुज़र जाऊँगातेरा पैमान-ए-वफ़ा राह की दीवार बनावरना सोचा था कि जब चाहूँगा, मर जाऊँगाज़िन्दगी शमा की मानिंद जलाता हूं 'नदीम'बुझ तो जाऊँगा मगर, सुबह तो कर जाऊँगा
हर शाम जलते जिस्मों का गाढ़ा धुआँ है शहरहर शाम जलते जिस्मों का गाढ़ा धुआँ है शहरमरघट कहाँ है कोई बताओ कहाँ है यह शहरफुटपाथ पर जो लाश पड़ी है उसी की हैजिस गाँव को यकीं था की रोज़ी-रसाँ है शहरमर जाइए तो नाम-ओ-नसब पूछता नहींमुर्दों के सिलसिले में बहुत मेहरबाँ है शहररह-रह कर चीख़ उठते हैं सन्नाटे रात कोजंगल छुपे हुए हैं वहीं पर जहाँ है शहरभूचाल आते रहते हैं और टूटता नहींहम जैसे मुफ़लिसों की तरह सख़्त जाँ है शहरलटका हुआ ट्रेन के डिब्बों में सुबह-ओ-शामलगता है अपनी मौत के मुँह में रवाँ है शहर