तेरी हर बाततेरी हर बात..तेरी हर बात मोहब्बत में गवारा करकेदिल के बाज़ार में बैठे है खसारा करकेमुन्तजिर हूँ के सितारों की जरा आँख लगेचाँद को छत पर बुला लूँगा इशारा करकेआसमानों की तरफ फैंक दिया है मैनेचंद मिटटी के चरागों को सितारा करकेमैं वो दरिया हूँ कि हर बूंद भंवर है जिसकी;तुमने अच्छा ही किया मुझसे किनारा करके
जो भी दुख याद न थाजो भी दुख याद न था..जो भी दुख याद न था याद आयाआज क्या जानिए क्या याद आयायाद आया था बिछड़ना तेराफिर नहीं याद कि क्या याद आयाहाथ उठाए था कि दिल बैठ गयाजाने क्या वक़्त-ए-दुआ याद आयाजिस तरह धुंध में लिपटे हुए फूलइक इक नक़्श तेरा याद आयाये मोहब्बत भी है क्या रोग 'फ़राज़'जिसको भूले वो सदा याद आया
बहुत तारीक सहरा हो गयाबहुत तारीक सहरा हो गया..बहुत तारीक सहरा हो गया हैहवा का शोर गहरा हो गया हैकिसी के लम्स का ये मोजज़ा हैबदन सारा सुनहरा हो गया हैये दिल देखूँ कि जिस के चार जानिबतेरी यादों का पहरा हो गया हैवही है ख़ाल-ओ-ख़द में रौशनी सीपे तिल आँखों का गहरा हो गया हैकभी उस शख़्स को देखा है तुम नेमोहब्बत से सुनहरा हो गया है
छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़..छोटे छोटे कई बे-फ़ैज़ मफ़ादात के साथलोग ज़िंदा हैं अजब सूरत-ए-हालात के साथफ़ैसला ये तो बहर-हाल तुझे करना हैज़ेहन के साथ सुलगना है कि जज़्बात के साथगुफ़्तुगू देर से जारी है नतीजे के बग़ैरएक नई बात निकल आती है हर बात के साथअब कि ये सोच के तुम ज़ख़्म-ए-जुदाई देनादिल भी बुझ जाएगा ढलती हुई इस रात के साथतुम वही हो कि जो पहले थे मेरी नज़रों मेंक्या इज़ाफ़ा हुआ अतलस ओ बानात के साथभेजता रहता है गुम-नाम ख़तों में कुछ फूलइस क़दर किस को मोहब्बत है मेरी ज़ात के साथ
तुम्हारी राह मेंतुम्हारी राह में..तुम्हारी राह में मिट्टी के घर नहीं आतेइसीलिए तो तुम्हें हम नज़र नहीं आतेमोहब्बतों के दिनों की यही ख़राबी हैये रूठ जाएँ तो फिर लौटकर नहीं आतेजिन्हें सलीका है तहज़ीब-ए-ग़म समझने काउन्हीं के रोने में आँसू नज़र नहीं आतेख़ुशी की आँख में आँसू की भी जगह रखनाबुरे ज़माने कभी पूछकर नहीं आतेबिसात-ए-इश्क पे बढ़ना किसे नहीं आतायह और बात कि बचने के घर नहीं आते'वसीम' जहन बनाते हैं तो वही अख़बारजो ले के एक भी अच्छी ख़बर नहीं आते
तुमने तो कह दिया कितुमने तो कह दिया कि..तुमने तो कह दिया कि मोहब्बत नहीं मिलीमुझको तो ये भी कहने की मोहलत नहीं मिलीनींदों के देस जाते, कोई ख्वाब देखतेलेकिन दिया जलाने से फुरसत नहीं मिलीतुझको तो खैर शहर के लोगों का खौफ थाऔर मुझको अपने घर से इजाज़त नहीं मिलीफिर इख्तिलाफ-ए-राय की सूरत निकल पडीअपनी यहाँ किसी से भी आदत नहीं मिलीबे-जार यूं हुए कि तेरे अहद में हमेंसब कुछ मिला, सुकून की दौलत नहीं मिली