मिसाल इसकी कहाँ है ज़माने मेंमिसाल इसकी कहाँ है ज़माने मेंकि सारे खोने के ग़म पाये हमने पाने मेंवो शक्ल पिघली तो हर शय में ढल गयी जैसेअजीब बात हुई है उसे भुलाने मेंजो मुंतज़िर ना मिला वो तो हम हैं शर्मिंदाकि हमने देर लगा दी पलट के आने में