मंजिल मंजिल ..पहर दिन सप्ताह महीने सालमत देखों मंजिल की चाह मेंये देखों कि कितना चले होऔर उसमें भी कितना भटके हो राह मेंयदि यह भटकाव कुछ कम हो जाएऔर तेजी ला दो चाल मेंतो बहुत मुमकिन है कि कामयाबीहांसिल हो जाए नए साल में।
मंजिल भीमंजिल भी..मंजिल भी उसकी थीरास्ता भी उसी का थाएक मैं अकेला थाकाफिला भी उसका थासाथ चलने की सोच भी उसकी थीरास्ता बदलने का फैसला भी उसका था;आज भी अकेला हूँ दिल सवाल करता हैलोग तो उसके ही थे क्या खुदा भी उसका था।
मंजिल भी उसकी थीमंजिल भी उसकी थी, रास्ता भी उसका थाएक मैं अकेला था, बाकी काफिला भी उसका थासाथ-साथ चलने की सोच भी उसकी थीफ़िर रास्ता बदलने का फ़ैसला भी उसका था