भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ारभीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार..भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलेंआ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलेंकोई खिड़की नहीं खुलती किसी बाग़ीचे मेंसाँस लेना भी है दुश्वार कहीं और चलेंतू भी मग़मूम है मैं भी हूँ बहुत अफ़्सुर्दादोनों इस दुख से हैं दो-चार कहीं और चलेंढूँढते हैं कोई सर-सब्ज़ कुशादा सी फ़ज़ावक़्त की धुंध के उस पार कहीं और चलेंये जो फूलों से भरा शहर हुआ करता थाउस के मंज़र हैं दिल-आज़ार कहीं और चलेंऐसे हँगामा-ए-महशर में तो दम घुटता हैबातें कुछ करनी हैं इस बार कहीं और चलें
फिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ मेंफिर खो न जाएँ हम कहीं दुनिया की भीड़ मेंमिलती है पास आने की मोहलत कभी कभी
निकले जो दुनिया की भीड़ में तो ये जाना हैनिकले जो दुनिया की भीड़ में तो ये जाना हैनिकले जो दुनिया की भीड़ में तो ये जाना हैदुखी है हर वो शख्स, जिसे आज फिर काम पर जाना है
भीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलेंभीड़ है बर-सर-ए-बाज़ार कहीं और चलेंआ मेरे दिल मेरे ग़म-ख़्वार कहीं और चलें