इश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दियाइश्क़ की दुनिया में इक हंगामा बरपा कर दियाऐ ख़याल-ए-दोस्त ये क्या हो गया क्या कर दियाज़र्रे ज़र्रे ने मेरा अफ़्साना सुन कर दाद दीमैंने वहशत में जहाँ को तेरा शैदा कर दियातूर पर राह-ए-वफ़ा में बो दिए काँटे कलीमइश्क़ की वुसअत को मस्दूद-ए-तक़ाज़ा कर दियाबिस्तर-ए-मशरिक़ से सूरज ने उठाया अपना सरकिस ने ये महफ़िल में ज़िक्र-ए-हुस्न-ए-यक्ता कर दियामुद्दा-ए-दिल कहूँ 'एहसान' किस उम्मीद परवो जो चाहेंगे करेंगे और जो चाहा कर दिया
किस को क़ातिल मैं कहूँकिस को क़ातिल मैं कहूँ..किस को क़ातिल मैं कहूँ किस को मसीहा समझूँसब यहाँ दोस्त ही बैठे हैं किसे क्या समझूवो भी क्या दिन थे कि हर वहम यकीं होता थाअब हक़ीक़त नज़र आए तो उसे क्या समझूँदिल जो टूटा तो कई हाथ दुआ को उठेऐसे माहौल में अब किस को पराया समझूँज़ुल्म ये है कि है यक्ता तेरी बेगानारवीलुत्फ़ ये है कि मैं अब तक तुझे अपना समझूँ
मोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों मेंमोहब्बत करने वालों के बहार-अफ़रोज़ सीनों मेंरहा करती है शादाबी ख़ज़ाँ के भी महीनों मेंज़िया-ए-महर आँखों में है तौबा मह-जबीनों मेंके फ़ितरत ने भरा है हुस्न ख़ुद अपना हसीनों मेंहवा-ए-तुंद है गर्दाब है पुर-शोर धारा हैलिए जाते हैं ज़ौक-ए-आफ़ियत सी शय सफीनों मेंमैं उन में हूँ जो हो कर आस्ताँ-ए-दोस्त से महरूमलिए फिरते हैं सजदों की तड़प अपनी जबीनों मेंमेरी ग़ज़लें पढ़ें सब अहल-ए-दिल और मस्त हो जाएँमय-ए-जज़्बात लाया हूँ मैं लफ़्ज़ी आब-गीनों में
उसूल-ए-वफ़ा:उसूल-ए-वफ़ाये मोहब्बत नहीं, उसूल-ए-वफ़ा हैऐ दोस्त, हम जान तो दे देंगे मगर अपनी जान का नंबर नहीं देंगे