वक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गयावक़्त का झोंका जो सब पत्ते उड़ा कर ले गयाक्यों न मुझ को भी तेरे दर से उठा कर ले गयारात अपने चाहने वालों पे था वो मेहर-बाँमैं न जाता था मगर वो मुझ को आ कर ले गयाएक सैल-ए-बे-अमाँ जो आसियों को था सज़ानेक लोगों के घरों को भी बहा कर ले गयामैं ने दरवाज़ा न रक्खा था के डरता था मगरघर का सरमाया वो दीवारें गिरा कर ले गयावो अयादत को तो आया था मगर जाते हुएअपनी तस्वीरें भी कमरे से उठा कर ले गयामेहर-बाँ कैसे कहूँ मैं 'अर्श' उस बे-दर्द कोनूर आँखों का जो इक जलवा दिखा कर ले गया