मत पूछ कैसे गुज़र रही है ज़िन्दगीमत पूछ कैसे गुज़र रही है ज़िन्दगीउस दौर से गुज़र रहा हूँ जो गुज़रता ही नहीं
मत पूछ कैसे गुज़र रही है ज़िन्दगीमत पूछ कैसे गुज़र रही है ज़िन्दगीउस दौर से गुज़र रहा हूँ जो गुज़रता ही नहीं
नेकियाँ खरीदी हैं हमने अपनी शोहरतें गिरवी रखकरनेकियाँ खरीदी हैं हमने अपनी शोहरतें गिरवी रखकरकभी फुर्सत में मिलना ऐ ज़िन्दगी तेरा भी हिसाब कर देंगे
कहीं छत थीकहीं छत थी, दीवार-ओ-दर थे कहीं, मिला मुझे घर का पता देर सेदिया तो बहुत ज़िन्दगी ने मुझे, मगर जो दिया, वो दिया देर से
दिल की हसरत मेरी ज़ुबान पे आने लगीदिल की हसरत मेरी ज़ुबान पे आने लगीतुमने देखा और ये ज़िन्दगी मुस्कुराने लगीये इश्क़ के इन्तहा थी या दीवानगी मेरीहर सूरत में मुझे सूरत तेरी नज़र आने लगी