अजनबी शहर मे किसी ने पीछे से पत्थर फेंका हैअजनबी शहर मे किसी ने पीछे से पत्थर फेंका हैजख्म कह रहा है जरुर इस शहर मे कोई अपना मौजूद है
क्या भला मुझ कोक्या भला मुझ को..क्या भला मुझ को परखने का नतीजा निकलाज़ख़्म-ए-दिल आप की नज़रों से भी गहरा निकलातोड़ कर देख लिया आईना-ए-दिल तूनेतेरी सूरत के सिवा और बता क्या निकलाजब कभी तुझको पुकारा मेरी तनहाई नेबू उड़ी धूप से, तसवीर से साया निकलातिश्नगी जम गई पत्थर की तरह होंठों परडूब कर भी तेरे दरिया से मैं प्यासा निकला
आकर ज़रा देख तो तेरी खातिर हम किस तरह से जिएआकर ज़रा देख तो तेरी खातिर हम किस तरह से जिएआंसु के धागे से सीते रहे हम जो जख्म तूने दिए
शायद फिर से वो तक़दीर मिल जाएशायद फिर से वो तक़दीर मिल जाएजीवन के वो हसीन पल मिल जाएचल फिर से बैठे क्लास की लास्ट बैंच परशायद वापिस वो पुराने दोस्त मिल जाए
अब भी ताज़ा हैं जख्म सीने मेंअब भी ताज़ा हैं जख्म सीने में;बिन तेरे क्या रखा हैं जीने मेंहम तो जिंदा हैं तेरा साथ पाने कोवर्ना देर कितनी लगती हैं जहर पीने में