दिल अपने को एक मंदिर बना रखा हैदिल अपने को एक मंदिर बना रखा हैउस के अंदर बस तुझ को बसा रखा हैरखता हूँ तेरी चाहत की तमन्ना रात दिनतेरे आने की उम्मीद का दिया जला रखा है
मैं कुछ कहूँ और तेरा ज़िक्र ना आयेमैं कुछ कहूँ और तेरा ज़िक्र ना आयेउफ्फ, ये तो तौहीन होगी, तेरी चाहत की
यह कौन शरमा रहा हैयह कौन शरमा रहा है, यूँ फ़ुर्सत में याद कर केकि हिचकियाँ आना तो चाहती हैं, पर हिच-किचा रही हैं।
मेरी चाहतें तुमसे अलग कब हैंमेरी चाहतें तुमसे अलग कब हैं, दिल की बातें तुम से छुपी कब हैंतुम साथ रहो दिल में धड़कन की जगह, फिर ज़िन्दगी को साँसों की ज़रूरत कब है
ये चाहतेंये चाहतें, ये रौनकें, पाबन्द है मेरे जीने तक;बिना रूह के नहीं रखते, घर वाले भी ज़िस्म को।