ये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक लेये सोच कर की शायद वो खिड़की से झाँक ले;उसकी गली के बच्चे आपस में लड़ा दिए मैंने
दिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा हैदिलों की बंद खिड़की खोलना अब जुर्म जैसा हैभरी महफिल में सच बोलना अब जुर्म जैसा हैहर ज्यादती को सहन कर लो चुपचापशहर में इस तरह से चीखना जुर्म जैसा है
अपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगाअपने घर की खिड़की से मैं आसमान को देखूँगाजिस पर तेरा नाम लिखा है उस तारे को ढूँढूँगातुम भी हर शब दिया जला कर पलकों की दहलीज़ पर रखनामैं भी रोज़ एक ख़्वाब तुम्हारे शहर की जानिब भेजूँगा