अब के हम बिछड़ेअब के हम बिछड़े..अब के हम बिछड़े तो शायद कभी ख़्वाबों में मिलेंजिस तरह सूखे हुए फूल किताबों में मिलेंढूंढ उजड़े हुए लोगों में वफ़ा के मोतीये खजाने तुझे मुमकिन है खराबों में मिलेंतू खुदा है न मेरा इश्क़ फरिश्तों जैसादोनों इन्साँ हैं तो क्यों इतने हिजाबों में मिलें आज हम दार पे खैंचे गए जिन बातों परक्या अजब कल वो ज़माने को निसाबों में मिलेंअब न वो मैं हूँ न तू है न वो माजी है 'फ़राज़'जैसे दो शख्स तमन्ना के सराबों में मिलें
तुझे फुर्सत न मिली पढ़ने की वरनातुझे फुर्सत न मिली पढ़ने की वरनाहम तो तेरे शहर में बिकते रहे किताबों की तरह